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बच्चों के बस्ते का बढ़ता बोझ: शिक्षा नीति की विफलता या प्रशासनिक लापरवाही?

मध्यप्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के छात्रों के बस्ते का वजन लगातार बढ़ता जा रहा है, जो शिक्षा नीति की विफलता और प्रशासनिक लापरवाही का संकेत है। नियमों के अनुसार, प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के बस्ते का वजन डेढ़ से ढाई किलो तक होना चाहिए, लेकिन राज्य में लगभग 8 लाख बच्चे 4.5 से 5 किलो तक का बोझ ढो रहे हैं।

एफएलएन पुस्तकों का अनावश्यक समावेश

प्रथम से चौथी कक्षा तक के पाठ्यक्रम में ‘फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्यूमेरसी’ (एफएलएन) की अतिरिक्त तीन किताबें जोड़ दी गई हैं, जो परीक्षा में शामिल नहीं होतीं। इन किताबों का उद्देश्य बच्चों की बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता को बढ़ाना था, लेकिन इनका पाठ्यक्रम से कोई संबंध नहीं है। इसके परिणामस्वरूप, छात्रों को अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है।

शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रभाव

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एफएलएन पुस्तकों का उद्देश्य बच्चों की बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता को बढ़ाना था, लेकिन इनका पाठ्यक्रम से कोई संबंध नहीं है। इसके परिणामस्वरूप, छात्रों को अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है।

प्रशासनिक विफलता और नीति की कमी

सरकार ने एफएलएन पुस्तकों को नर्सरी से दूसरी कक्षा तक लागू करने का निर्णय लिया था, लेकिन केवल 4,500 प्री-नर्सरी स्कूल ही शुरू हो पाए हैं, जिनमें से 3,000 में शिक्षक-स्टाफ की कमी है। इसके बावजूद, तीसरी और चौथी कक्षा में भी इन पुस्तकों को लागू कर दिया गया है, जो प्रशासनिक विफलता और नीति की कमी को दर्शाता है।

समाधान और सुझाव

  • पाठ्यक्रम की समीक्षा: पाठ्यक्रम में अनावश्यक किताबों को हटाकर केवल आवश्यक विषयों की किताबें शामिल की जाएं।

  • शिक्षण विधियों में सुधार: ‘प्ले-वे लर्निंग’ जैसी विधियों को अपनाकर बच्चों की रुचि और समझ को बढ़ाया जाए।Jansatta

  • अभिभावकों की जागरूकता: अभिभावकों को बच्चों के बस्ते के वजन के प्रति जागरूक किया जाए और उन्हें आवश्यकतानुसार किताबें ही स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया जाए।

बच्चों के बस्ते का बढ़ता बोझ उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। सरकार और प्रशासन को इस गंभीर समस्या का समाधान शीघ्रता से करना चाहिए, ताकि बच्चों का बचपन सुरक्षित और स्वस्थ रहे।

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