E-Paper
E-Paper
Homeमध्यप्रदेशनिजी क्षेत्र के सहयोग से वन्यप्राणी संरक्षण की तैयारी: एमपी सरकार ने...

निजी क्षेत्र के सहयोग से वन्यप्राणी संरक्षण की तैयारी: एमपी सरकार ने तैयार की नई नीति, कैबिनेट की मंजूरी बाकी

मध्यप्रदेश सरकार अब वन्यप्राणियों के संरक्षण के लिए निजी क्षेत्र की मदद लेने की योजना बना रही है। वन विभाग ने इसके लिए एक नई नीति का प्रारूप तैयार कर लिया है, जिसे कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा गया है। प्रस्तावित नीति के तहत, सरकार कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) फंड के माध्यम से वन्यजीवों के संरक्षण, उनके रहवास और सुरक्षा से जुड़े कार्यों के लिए निजी संस्थानों से आर्थिक सहयोग ले सकेगी।

बैकग्राउंड: वनों में निजी दखल पहले से विवादों में

दो माह पहले प्रदेश सरकार ने बिगड़े वनों के सुधार के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी वाली नीति पेश की थी, जिसका आरएसएस से जुड़े वनवासी विकास संघ और कई आदिवासी संगठनों ने तीखा विरोध किया था। संगठनों का कहना था कि इससे वनों की पारंपरिक संरचना प्रभावित होगी और वनवासी समुदायों का अधिकार खतरे में पड़ सकता है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को सौंपे ज्ञापन में संगठनों ने स्पष्ट किया था कि निजी दखल वनों को लाभ नहीं, बल्कि और अधिक नुकसान पहुंचाएगा मुख्यमंत्री ने तब नीति पर पुनर्विचार का आश्वासन दिया था, जिसके बाद सुधार कार्यक्रम फिलहाल रोक दिया गया है।

अब वन्य प्राणियों के लिए CSR का रास्ता

18 Photos of Mp Jungle Safari Tours and Travels in Bandhavgarh National  Park, Umariya - Justdial

इन विरोधों को देखते हुए वन विभाग ने अब एक बदलाव किया है — इस बार फोकस बिगड़े वनों की बजाय वन्यप्राणियों के संरक्षण पर रखा गया है। विभाग का तर्क है कि टाइगर फाउंडेशन कमेटी जैसी संस्थाओं में CSR से फंड लेने का प्रावधान तो है, लेकिन इसे लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं थी। अब इस नीति के जरिए उस कमी को दूर किया जाएगा।

नीति को लेकर क्या होगा आगे?

कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद, वन विभाग निजी कंपनियों और संस्थाओं से CSR या अन्य मदों के तहत अनुदान लेकर संरक्षण परियोजनाओं पर काम कर सकेगा। इसमें वन्यजीवों के रहवास स्थलों का विकास, सुरक्षा उपाय, मॉनिटरिंग सिस्टम, और संरक्षित क्षेत्रों की व्यवस्थाएं शामिल हो सकती हैं।

विवाद फिर लौट सकता है?

हालांकि इस नीति का दायरा वन्यप्राणी संरक्षण तक सीमित रखा गया है, लेकिन निजी दखल को लेकर उठे पुराने विरोध दोबारा सामने आ सकते हैं। विशेषकर तब, जब आदिवासी संगठन और पर्यावरण कार्यकर्ता इसे प्राकृतिक संसाधनों के निजीकरण की दिशा में एक और कदम मानें।

सरकार जहां साझेदारी के जरिए संरक्षण की नई राह खोलना चाहती है, वहीं स्थानीय समुदायों और पारंपरिक संरचनाओं को भरोसे में लेना इसके लिए बेहद जरूरी होगा। कैबिनेट से नीति को हरी झंडी मिलने के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि इसका जमीनी असर कितना सकारात्मक होता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Must Read

spot_img