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भोपाल AIIMS में एक और चिकित्सा उपलब्धि: मां ने बेटे को दी जिंदगी, 9वां किडनी ट्रांसप्लांट रहा सफल

भोपाल एम्स में 21 अप्रैल को एक 24 वर्षीय युवक का सफल किडनी ट्रांसप्लांट किया गया, जिसने न सिर्फ चिकित्सा की सफलता को दर्शाया, बल्कि मां-बेटे के रिश्ते की अनूठी मिसाल भी कायम की। बिहार निवासी युवक को डेढ़ साल से किडनी फेल्योर की समस्या थी। जब एम्स दिल्ली में लंबी वेटिंग लिस्ट से राहत नहीं मिली, तब उसने भोपाल का रुख किया—जहां उसकी मां ने अपनी किडनी दान कर बेटे को नई जिंदगी दी।

कैसे हुआ ट्रांसप्लांट: जांच, मैचिंग और मेडिकल टीम का समर्पण

भोपाल एम्स पहुंचने के बाद युवक की सभी जरूरी जांचें की गईं। क्रॉस-मैचिंग में मां की किडनी उसके शरीर से मेल खा गई। डॉक्टरों की टीम ने 21 अप्रैल को सफलतापूर्वक किडनी प्रत्यारोपण किया। यह भोपाल एम्स का नवां किडनी ट्रांसप्लांट था।

जल्द होगा बच्चों का किडनी ट्रांसप्लांट भी

एम्स में अब पीडियाट्रिक किडनी ट्रांसप्लांट की भी तैयारी शुरू हो गई है। कुछ बच्चों की प्रक्रिया प्रारंभिक स्तर पर है और डोनर से मेल होने पर जल्द ही उनका ऑपरेशन किया जाएगा। एम्स में पहला किडनी ट्रांसप्लांट 22 जनवरी 2024 को, और पहला कैडेवर डोनेशन आधारित ट्रांसप्लांट 8 नवंबर 2024 को हुआ था।

Kidney transplantation turns back the clock on renal aging

अंगदान की ज़रूरत और वर्तमान स्थिति

भारत में अंगदान की दर अब भी कम बनी हुई है। नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (NOTTO) की रिपोर्ट के अनुसार:

  • वर्ष 2023 में पूरे देश में 1,099 कैडेवर डोनेशन हुए।

  • तेलंगाना रहा अग्रणी: 252 डोनेशन

  • मध्यप्रदेश में मात्र 8 डोनेशन, जो जागरूकता की कमी दर्शाता है।

बोन मैरो ट्रांसप्लांट को मिला आयुष्मान भारत में स्थान

सरकार ने आयुष्मान भारत योजना में अब उन्नत तकनीकों को शामिल करना शुरू कर दिया है:

  • बोन मैरो ट्रांसप्लांट,

  • इंटरवेंशनल न्यूरो रेडियोलॉजी,

  • और अन्य आधुनिक उपचार अब योजना के दायरे में हैं।

इससे ब्लड कैंसर और खून से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित मरीजों को बेहतर इलाज की सुविधा मिलेगी।

जन-जागरूकता की जरूरत

मध्यप्रदेश में अंगदान की दर बेहद कम है। जरूरी है कि:

  • लोग कैडेवर डोनेशन (ब्रेन डेड मरीजों से अंगदान) के महत्व को समझें।

  • मीडिया, मेडिकल संस्थाएं और सरकार मिलकर अंगदान जागरूकता अभियान चलाएं।

भोपाल एम्स में हुआ यह किडनी ट्रांसप्लांट सिर्फ एक सर्जरी नहीं, बल्कि मां के प्रेम, चिकित्सा विज्ञान की प्रगति और सेवा भावना का संगम है। यह घटना न केवल मेडिकल क्षेत्र में एक उपलब्धि है, बल्कि समाज को भी सोचने पर मजबूर करती है कि हम कैसे दूसरों की जिंदगी बचाने में योगदान दे सकते हैं।

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