भोपाल | मध्यप्रदेश सरकार अब कलेक्टरों की कार्यशैली और प्रदर्शन का मूल्यांकन और अधिक वैज्ञानिक व पारदर्शी बनाने की दिशा में कदम उठा रही है। कलेक्टरों के बार-बार किए जाने वाले तबादलों पर नियंत्रण के बाद अब सरकार उनकी परफॉर्मेंस रेटिंग पर फोकस कर रही है। इसके लिए 400 से अधिक स्थायी और डायनामिक पैरामीटर्स तय किए गए हैं, जो कलेक्टरों की रेटिंग का आधार बनेंगे।
क्यों हो रही है रेटिंग प्रक्रिया में बदलाव?
पहले सरकार ने स्टेट कॉल सेंटर से प्राप्त फीडबैक को रेटिंग का आधार बनाया था। हालांकि, इसमें कई ऐसे कलेक्टरों की रेटिंग खराब आई जिन्होंने ज़मीनी स्तर पर बेहतरीन कार्य किया था। इससे संकेत मिले कि मात्र कॉल फीडबैक पर आधारित प्रणाली व्यवहारिक और निष्पक्ष नहीं है। परिणामस्वरूप, अब इस प्रणाली को ज्यादा मजबूत और व्यापक बनाया जा रहा है।
मुख्यमंत्री की चेतावनी: “हमारे पास सबकी रिपोर्ट है”
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मई 2025 में आयोजित समाधान ऑनलाइन बैठक के दौरान 55 जिलों के कलेक्टरों को यह कहकर चौंका दिया था कि उनके पास प्रत्येक कलेक्टर की परफॉर्मेंस रिपोर्ट उपलब्ध है, लेकिन इस बार इसे सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। इसके बाद जिलों की ग्रेडिंग प्रक्रिया को सरकार ने और गंभीरता से लेना शुरू किया।
अच्छा काम करने वालों की भी रिपोर्ट कमजोर क्यों?
कुछ कलेक्टरों ने जब इस रिपोर्टिंग प्रणाली की जानकारी जुटाई, तो पता चला कि सरकार द्वारा निर्धारित कुछ ग्रेडिंग फॉर्मूलों के कारण अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद वे कमजोर जिलों में शामिल कर दिए गए। इस पर सवाल उठे, जो शासन तक पहुँचे। अब सरकार इस प्रणाली को और सशक्त बनाने की तैयारी में है, जिससे रिपोर्ट पूरी तरह वस्तुनिष्ठ हो और किसी को शिकायत का मौका न मिले।
रिपोर्टिंग प्रणाली की संरचना कैसी होगी?
1. 400 से अधिक पैरामीटर्स पर आधारित रिपोर्ट
एमपीएसईडीसी (MPSEDC) के सीईओ आशीष वशिष्ठ के अनुसार, रिपोर्टिंग प्रणाली में सभी विभागों की योजनाओं और शासन की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए 400+ पैरामीटर शामिल किए गए हैं।
2. डायनामिक पैरामीटर्स की भूमिका
इस प्रणाली में डायनामिक पैरामीटर्स को भी जोड़ा गया है, जो समय और स्थिति के अनुसार बदल सकते हैं, जैसे:
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गर्मी के मौसम में गेहूं खरीदी
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बारिश में बाढ़ राहत कार्य
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त्योहारों में कानून व्यवस्था
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शिक्षा सत्र के समय स्कूल-कॉलेज में प्रवेश व्यवस्था
डेटा कहां से आएगा?
वशिष्ठ के मुताबिक, रिपोर्ट तैयार करने के लिए अलग से कोई जानकारी नहीं मंगाई जा रही है। सभी विभागों के पोर्टल पहले से आपस में इंटीग्रेटेड हैं। सरकार इन्हीं पोर्टलों से डेटा लेकर प्रत्येक योजना का औसत निकालती है और उसी के आधार पर जिलावार परफॉर्मेंस रिपोर्ट बनाई जाती है।
अभी यह प्रारंभिक चरण में है, इसलिए फिलहाल जिलों को सामूहिक रिपोर्ट नहीं सौंपी गई है।
शासन की प्राथमिकता भी तय करेगी स्कोरिंग
हर महीने कलेक्टरों की परफॉर्मेंस रेटिंग करते समय शासन की प्राथमिकताएं एक प्रमुख घटक होंगी।
उदाहरण के लिए:
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ग्रीष्मकाल में गेहूं की खरीदी
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मानसून के दौरान बाढ़ प्रबंधन और राहत कार्य
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त्योहारी सीज़न में कानून व्यवस्था बनाए रखना
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उद्योग स्थापना के लिए ज़मीन आवंटन और प्रक्रिया की तेजी
इन जैसे पैरामीटर लगातार अपडेट होते रहेंगे और रिपोर्टिंग में प्राथमिक भूमिका निभाएंगे।